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मेवात(बिलाल अहमद):मेवात जिले में कुल 325 गांव है। जिनमेंसे 150 गांवों के लोग प्रर्याप्त बरसात न होने से पिछले 2 दशक से पेयजल संकट से जूझ रहे है। इन गांवो में जमीनी पानी कड़वा है। मजबूरी में ग्रामीणों को प्यास बुझाने के लिए सरकारी संशाधनों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। पेयजल संकट का सबसे बड़ा दूसरा कारण यह है कि निरंतर जल स्तर घटने से पूर्वजो द्वारा बनाए गए 900 कुओं में भी पानी पूरी तरह सूख चुका है।जिले की प्रवेश सीमा रोजका मेव से लेकर मुण्डाका सीमातक लगभग 70 किलो मीटर दिल्ली-अलवर मार्ग के दोनों ओर जमीनी पानी कड़वा है। सड़क के दोनों ओर बसे 150 गांव के लोग दो दशक पूर्व में गांव में बने कुओं से पानी प्राप्त कर प्यास बुझाते थे। लेकिन दो दशक से मेवात जिले में बरसात अपेक्षा से कम होने से गांव मेंबने कुओं का जल स्रोत बंद हो चुका है। इसलिए गांव में बने 900 कुएं पूरी तरह सूख चुके है। सरकार की ओर सेअरावली के दामन में टयूवैल लगा कर प्रभावित गांवों के लोगों की पानी की समस्या को हल किया गया,लेकिन बरसात की कमी से सरकारी बोरों का भी जल स्तर घट कर नीचे चला गया जिससे सरकारी टयूवैल भी लोगों की प्यासबुझाने में विफल हो गए इस तरह गांवों में फिर द्वबारा पेयजल संकट पैदा हो गया। मेवात के लोगों की बार-बार मांग करने पर पूर्व चौटाला सरकार में 425 करोड़ रूपये की रैनिवैल परियोजना को हरी झंडी दी गई, जिसके अंतर्गत 136 गांवो में पेयजल आपूर्ति का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। चौटाला सरकार जाने के बाद उस योजना को हुडडा सरकार में पूरा किया गया,लेकिन हुडडा सरकार ने राजनैतिक दबाव में रैनिवेल परियोजनो को दो भागों में बांट दिया। मेवात जिले के गांवों के लिए शुरू की गई राजीव गांधी रैनिवेल परियोजना सरकारी कर्मचारियों की गलत सोच के चलते अपना लक्ष्य में आज भी अधूरी है। यही कारण है। कि मेवात के 150 गांव के लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे है।जिले का नगीना,नूंह,फिरोजपुर-झिरका खंड के गांव पेयजल संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित है। गांव में फैले पेयजल संकट से निबटने के लिए गांव के अमीर परिवारों ने प्यास बुझाने के अपने घर के सामने 3 हजारलीटर से लेकर पांच हजार लीटर तक के जमीनी टेंक बनाए हुए है। जिनमें 700 से 1200 रूपये देकर गांव की दूरी से पानी का टेंकर मंगा कर डलवाया जाता है। जिससे अमीर परिवार तथा उनके पशु प्यास बुझाते है। पेयजल संकट की सबसे बड़ी समस्या गरीब परिवारों के सामने है। वह मोल लेकर पानी नहीं पी सकते,इसलिए गरीब परिवारों को प्यास बुझाने के लिए सरकारी संशाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। सरकारी विभाग द्वारा करोड़ों रूपये की राशि खर्च कर अरावली के दामन में लगे टयूवैल भी पानी छोड़ चुके है। रैनिवेल परियोजना लोगों की प्यास बुझाने के लिए प्रर्याप्त नहीं है। ऐसी हालत में गरीब परिवार दिन – रात प्यासबुझाने के लिए पानी की तलाश में मारे-मारे फिरना आम बात है। गरीब परिवारों को जहां भी पानी नजर आता है। मजबूरी में उसी पानी से अपने साथ-साथ उनके पशु भी गंदा पानी पी कर अपनी प्यास बुझा रहे है।फिरोजपुर – झिरका खंड के बिलोंडा,ढ़ाडौली,सिधरावट,सोलपुर,पाठखोयरी, जली खोयरी, पाटण-उदयपुरी आदि गांवों में लातूर से भी बुरे हालातहै। सरकारी विभाग के टयूवैलो का जल स्तर काफी नीचे चलागया है। यानि कि सरकारी टयूवैल पूरी तरह बंद हो चुके है। इन गांवों में रैनिवेल परियोजना से भी पानी नहीं पंहुच पा रहा है। ग्रामीणों को अपने टयूवैलों से अपने परिवार की प्यास बुझानी पड़ रही है। लेकिन टयूवैलो का जल स्तर 150 से 1000 फूट नीचे खिसक गया है। गांवो के लोगों को प्रतिदिन पीने का पानी प्राप्त करना किसी सौगात से कम नहीं है।

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