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बुलंदशहर गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट सरकारी पदों पर बैठे लोगों की बयानबाजी को लेकर दिशा-निर्देश जारी करने पर सुनवाई कर रहा है. कोर्ट में इस बात पर बहस चल रही है कि किसी भी तरह का सार्वजनिक बयान देने वाले मंत्रियों के व्यवहार और कर्तव्य पर क्या निर्देश जारी हों. बुलंदशहर में मां-बेटी के साथ हुए गैंगरेप केस में यूपी के पूर्व मंत्री के कथित विवादित बयान के बाद कोर्ट दायर याचिका की सुनवाई कर रहा है.पिछली सुनवाई में वरिष्ठ न्यायविद फली नरीमन ने ही ये कहा था कि कुछ दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट को जारी करने चाहिए. आज सुनवाई के दौरान फली नरीमन ने कहा कि क्या हम किसी व्यक्ति की टिप्पणी करने की संवैधानिक आजादी वापस ले सकते हैं, वो आज़म खान हों या कोई और?इस पर कोर्ट ने पूछा कि किसी सरकारी पद पर रह कर इस तरह का बयान किसी रेप पीड़िता पर कर सकते हैं? क्या सार्वजनिक पद पर आसीन लोगों को ऐसा करने का अधिकार है?कोर्ट ने ये भी कहा कि इस मसले को संविधान में दिए गए मूल कर्तव्यों के परिपेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए.कोर्ट की तरफ से ये भी पूछा गया कि कोई कानून ना होने की वजह से क्या कोई कुछ भी टिप्पणी कर सकता है.कोर्ट ने ये भी कहा कि उदाहरण के तौर पर अगर कोई एफआईआर दर्ज होती है तो क्या पुलिस महानिदेशक जैसे पद का अधिकारी ये कमेंट कर सकता है कि ये राजनैतिक साजिश का नतीजा है. आखिर फिर जांच का सवाल ही कहां रह जाएगा? कोर्ट ने वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे को कोर्ट की मदद के लिए आग्रह किया है.

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