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भारत में शिक्षा |Essay on Education in India in Hindi!
भारत में अन्य देशों की तुलना में शिक्षित लोगों का प्रतिशत काफी कम है । इग्लैंड, रुस तथा जापान में लगभग शत-प्रतिशत जनसंख्या साक्षर है । यूरोप एवं अमेरिका में साक्षरता का प्रतिशत 90 से 100 के बीच है जबकि भारत में 2001 में साक्षरता का प्रतिशत 65.38 है ।
1951, 1961 तथा 1971 की जनगणना में साक्षरता दर की गणना करते समय पांच वर्ष या उससे ऊपर की आयु के व्यक्तियों को सम्मानित किया गया है अर्थात न वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को निरक्षर किया गया है चाहे वे किसी भो स्तर की शिक्षा ग्रहण किए हैं ।
2001 की जनगणना में उस व्यक्ति को साक्षर माना गया है जो किसी भाषा को पढ़ लिख अथवा समझ सकता है । साक्षर होने के लिए यह जरुरी नहीं है कि व्यक्ति ने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त की हो या कोई परीक्षा पास की हो ।
सन् 1976 में भारतीय संविधान में किए गए संशोधन के बाद शिक्षा केन्द्र और राज्यों की साक्षर जिम्मेदारी बन गई है । शिक्षा प्रणाली और उसके ढांचे के बारे में फैसले आमतौर पर राज्य ही करते हैं । लेकिन शिक्षा के स्वरुप और गुणवत्ता का दायित्व स्पष्ट रुप से केन्द्र सरकार का ही है ।
सन् 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति तथा 1992 की मार्च योजना में 21वीं शताब्दी के प्रारम्भ होने से पहले ही देश में चौदह वर्ष तक के सभी बच्चों को संतोषजनक गुणवत्ता के साथ नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध अन्तर्गत सरकार की वचनवद्वंता के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद का छ: प्रतिशत शिक्षा के क्षेत्र के लिए खर्च किया जाएगा इस धनराशि का 50: प्राथमिक शिक्षा पर व्यय किया जाएगा ।
आठवीं पंचवर्षीय योजना में शिक्षा के लिए योजना खर्च बढ़ाकर 19,600 करोड़ रुपए कर दिया गया जबकि पहली योजना में यह 153 करोड़ रुपए था । सकल घेरलू उत्पाद के प्रतिशत की दृष्टि से शिक्षा पर खर्च 1951-52 के 0.7 प्रतिशत से बढ्कर 1997-98 में 3.6 प्रतिशत हो गया ।
नौवीं योजना में शिक्षा खर्च 20,381.64 करोड़ रुपए रखा गया । इसमें 4,526.74 करोड़ रुपए का वह प्रावधान शामिल नहीं है जो नौवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तिम तीन वर्षों में प्राथमिक स्कूलों में पोषाहार सहायता के लिए किया गया।
1999-2000 में कुल केन्द्रीय योजना खर्च का 64.6 प्रतिशत प्राथमिक प्राथमिक शिक्षा पर खर्च के लिए निर्धारित किया गया । राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संकल्प किया गया कि इक्कीसवीं शताब्दी के शुरु होने से पहले देश में चौदह वर्ष के आयु में सभी बच्चों को निःशुल्क अनिवार्य और गुणवत्ता की दृष्टि से सन्तोषजनक शिक्षा उपलब्ध कराई जाए । आठवीं पंचवर्षीय योजना में सबके लिए प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य के बारे में प्रमुख रुप से तीन मानदण्ड निर्धारित किए गए हैं – सार्वभौम पंहुच, सार्वभौम धारणा, सार्वभौम उपलब्धि ।
केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा किए गए प्रयत्नों के फलस्वरुप देश की 94 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को एक किलोमीटर के दायरे में कम से कम एक प्राकृतिक विद्यालय और 84 प्रतिशत ग्रामीण आबादी तीन किलोमीटर के दायरे में एक उच्च प्राकृतिक विद्यालय उपलब्ध कराया गया । दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) के दृष्टिकोण पत्र में वर्ष 2007 तक सभी को प्राकृतिक शिक्षा उपलब्ध कराके साक्षरता दर 72: तथा वर्ष 2012 तक 80: करने का संकल्प किया गया है ।
1950-51 से 1998-99 तक माध्यमिक शिक्षा के स्तर में उल्लेखनीय प्रगति आई : 1) माध्यमिक स्तर के शिक्षा संस्थान 7416 से बढ़कर 1.10 लाख हो गए । 2) माध्यमिक स्तर पर लड़कियों की संख्या 13.3 प्रतिशत से बढ़कर 37.1 प्रतिशत पर पहुंच गई । 3) लड़कियों के दाखिले 2 लाख से बढ़कर 101 लाख हो गए ।
उच्च शिक्षा की दृष्टि से भी देश प्रगति की ओर अग्रसर है । वर्तमान में देश के 185 विश्वविद्यालय, 42 सम-विश्व विद्यालय और 5 संस्थान हैं जो उच्च शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं । देश में कॉलेजों की कुल संख्या 11,100 हैं । देश के सभी विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या 74.18 लाख है ।
जबकि देश के सभी विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या 74.18 लाख है । जबकि अध्यापकों की संख्या 3.42 लाख है । वर्ष 2003-04 के केन्द्रीय बजट में माध्यमिक सर्व उच्च शिक्षा हेतु 3,125 करोड़ रुपये आबंटित किए हैं, जो गत वर्ष से 305 करोड़ रुपए अधिक हैं ।
उच्च वैज्ञानिक सुविधाओं की सुलभता तथा उसकी गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में अनेक प्रयास किए । यह सुनिश्चित करने के लिए कि उच्च शिक्षा संस्थान उत्कृष्टता के केन्द्र बन सकें, यह निर्णय किया गया कि प्रत्यायन क्रियाविधियां सभी विश्वविद्यालय के लिए अनिवार्य बना दी जाएं ।
इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए अन्य संगठनों सहित राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिक्ष्य को समुचित रुप से चुस्त बनाया जाएगा और अधिक संख्या में स्वायत कॉलेज स्थापित किए जाने के लिए और अधिक बढ़ावा दिया जाएगा ताकि उच्च शिक्षा की पाठ्यचर्या में अधिक नवाचार तथा नमनशीलता लाई जा सके ।
सरकार ने उच्च शिक्षा क्षेत्र के मिश्रित योजनागत तथा योजनोतर आंबटनों – दोनों रुपों में वित्तीय सहायता में उल्लेखनीय वृद्धि की है । उच्च शिक्षा के लिए समग्र आबंटन जो आठवीं योजना में 800 करोड़ रुपए का, नौवीं योजना में बढ़ाकर 200 करोड़ रुपए कर दिया गया है ।
जहां तक योजनोतर आबंटन का संबंध है, विश्व विद्यालय अनुदान आयोग के लिए 1999-2000 के बजट अनुमानों के अनुसार 640 करोड़ रुपए के बजट आंबटन को संशोधित करके 975 करोड़ रुपए कर दिया गया है । उच्च शिक्षा क्षेत्र को आर्थिक दृष्टि से और अधिक व्यवहार बनाने के उद्देश्य से विश्वविद्यालयों की शुल्क संरचनाओं को संशोधित करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं ।